सुरक्षित नहीं खाकी, बिहार के पुलिस इंस्पेक्टर अश्विनी कुमार के अलावा भी कई पुलिसकर्मियों ने गंवाई जान

नई दिल्ली। बिहार ( Bihar ) के किशनगंज ( Kishanganj)सीमा से सटे बंगाल में ग्वालपोखर थाना क्षेत्र के पंतापाड़ा गांव में बाइक चोरी के मामले में छापेमारी करने गई पुलिस टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया। इस हमले में सदर थानाध्यक्ष अश्विनी कुमार ( Ashwani Kumar ) की मौके पर ही मौत हो गई।

इस घटना ने एक बार फिर खाकी की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसा पहली बार नहीं है पहले भी ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों को अपराधियों या फिर लोगों को आक्रोश का खामियाजा जान गंवा कर देना पड़ा है।

फिर चाहे वो बुलंदशहर में हुई सुबोध कुमार सिंह की निर्मम हत्या या फिर सीतामढ़ी में हाल में शराब माफियों के हमले में मारे गए दरोगा दिनेश राम। ऐसे कई मामले जब खाकी पर जानलेवा हमले हुए हैं। आइए जानते हैं कुछ ऐसी घटनाएं जब ड्यूटी पर तैनात पुलिकर्मियों की हुई हत्या।

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जब मुंगेर में मिला पुलिसकर्मी का शव
लखीसराय में तैनात सिपाही की हत्या ने महकमे में कोहराम मचा दिया। रवि रंजन ऊर्फ चुन्नू नाम के एएसआई की सीतामढ़ी में बदमाशों ने हत्या कर दी। वैशाली के रहने वाले इस सिपाही के शव को इन बदमाशों ने मुंगेर में फेंक दिया।

रविरंजन उर्फ चंदन लखीसराय पुलिस केंद्र में तैनात था। वह 27 फरवरी से ही लापता था। उसकी काफी खोजबीन की जा रही थी, इस बीच 4 मार्च को पुलिसकर्मियों को एक अज्ञात शव की सूचना मुंगेर में मिली। शिनाख्त के बाद पता चला ये रवि रंजन का ही शव है।

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गोकशी को लेकर उग्र भीड़ ने की सुबोध कुमार सिंह की हत्या
तीन दिसंबर 2018 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में झकझोर देने वाली घटना सामने आई। स्याना इलाके के चिंगरावटी क्षेत्र में कथित गोकशी को लेकर उग्र भीड़ की हिंसा में थाना कोतवाली में तैनात इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और सुमित नामक एक अन्य युवक की हत्या कर दी गई।

दरअसल पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह ग़ुस्से से भरी भीड़ को नियंत्रित करने में लगे थे। लेकिन बेकाबू भीड़ सुबोध और उनके साथी पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी करने के साथ गोलियां भी चला रही थी।

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कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या
2 जुलाई 2020 की वो रात हर किसी के जहन में अब ताजा है। जब खुख्यात अपराधी विकास दुबे ने अपने गुर्गों के साथ मिलकर दबिश देने पहुंची पुलिस टीम पर ही हमला बोल दिया। इस हमले में क्षेत्राधिकारी देवेंद्र मिश्रा समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे।

इस घटना के बाद से ही विकास दुबे अपने साथियों के साथ फरार हो गया, हालांकि पुलिस ने उसे 7 दिन में पकड़ा और एनकाउंटर में ढेर कर दिया। लेकिन आठ पुलिसकर्मियों की शहादत ने खाकी की सुरक्षा पर जवाब सवाल खड़ा कर दिया।

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शराब माफियाओं के बुलंद हौसले
बिहार में शराब माफियाओं के हौसले कितने बुलंद हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिसकर्मी की हत्या करने में इन्हें किसी का डर नहीं है। 24 फरवरी 2021 को बिहार के ही सीतामढ़ी में शराब तस्करी होने और शराब की खेप उतरने की गुप्त सूचना पर जब मेजरगंज के दारोगा दिनेश राम ने पुलिस फोर्स के साथ रेड की तो शराब माफियाओं ने उन पर दिन दहाड़े गोलियां बरसा दीं।

इस गोलीबारी में दरोगा दिनेश राम शहीद हो गए। जबकि एक चौकीदार बुरी तरह जख्मी हो गया।
इसी घटना के कुछ दिन रोहतास में भी शराब माफियाओं ने पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमला कर दिया। इस हमले में पुलिसकर्मियों का गाड़ियों को भी फोड़ डाला। गनीमत यह रही कि किसी जान नहीं गई, लेकिन कई पुलिस वाले गंभीर रूप से घायल हो गए।

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अकेले आगरा में 7 पुलिसकर्मियों की हत्या
खाकी कितनी सुरक्षित है इसका अंदाजा आगरा में हो रही पुलिसकर्मियों की हत्या से लगाया जा सकता है। पिछले 0 वर्ष में अकेले आगरा में सात पुलिसकर्मियों की अलग-अलग घटनाओं में मौत हो चुकी है। पिछले वर्ष ही 8 नवंबर 2020 को खेरागढ़ में खनन माफिया के गुर्गे ने सिपाही सोनू की ट्रैक्टर चढ़ाकर हत्या कर डाली थी।



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