दो प्रेमियों की बेरहम जुदाई : जब प्यार बन गया जहर
हसनप्रीत सिंह लाइब्रेरी में अपने सामने अखबार फैलाए बैठा था. फिर भी उस का सारा ध्यान सीढि़यों की तरफ ही लगा हुआ था. सीढि़यों पर जैसे ही किसी के आने की आहट होती, वह चौकन्ना हो कर उधर देखने लगता. उसे पूरी उम्मीद थी कि रमनदीप कौर जरूर आएगी. दरअसल वह खुद ही तयशुदा वक्त से 15-20 मिनट पहले आ गया था. कस्बे में उन दोनों की मुलाकातें न के बराबर ही हो पाती थीं. सारा दिन एकदूसरे के लिए तड़पते रहने के बावजूद वे 10-15 दिनों में एकाध बार, बस 3-4 मिनट के लिए ही मिल पाते थे. इस छोटी सी मुलाकात के दौरान भी आमतौर पर उन में आपस में कोई बात नहीं हो पाती थी. ये भी पढ़ें- CrimeStory: फेसबुक का अंतहीन अंधेरा उन की बातचीत का माध्यम वे पर्चियां ही रह गई थीं, जो एकदूसरे को लिखा करते थे. इन्हीं पर्चियों में वे अपनी सब भावनाएं, अपने सब दर्द उड़ेल दिया करते थे. इन्हीं पर्चियों में उन की अगली मुलाकात की जगह और उस का वक्त तय होता था. दरअसल, खेमकरण जैसे छोटे से उस कस्बे में लड़केलड़की का आपस में बात करना इतना आसान नहीं था. फिर बात जब एक ही गांव और एक ही बिरादरी की हो तो और भी मुश्किलें पैदा हो जाती हैं. बात तो कह...